Sunday 7 August 2016

आत्मा तू कहां है
मुझे हमेशा तेरी याद रहती है
अपार दुखों मे भी एक अनदेखा सहारा रहता है
तेरे दर्पण मे सदैव खुद को सवांरा करता हु
फिर भी क्यों धूमिल सा रहता हूं
ये कर्मो की धूल है या
मै तुझको न समझा
मेरी समझ की धूल?
सदैव तेरेै एहसास मै जिया
मैने खुद को तेरी दीवारों मे
बन्दी किया,
न मिला सिला बन्दगी का
ना मिला दीदार जिन्दगी का
ये मेरी समझ की धूल है
या मेरी कोइ भूल है
 तेरे साथ मेरा रहता सदा व्यवहार है
पर फिर भी क्यों रहती सदा दीवार है?

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