जिन्दगी ए जिन्दगी
उसमे और कुछ भावुक बुद्धिजीवि लोगो की सोच मे
इतना ही फर्क था
कि वो सोचते थे
कि लोग जीते कैसे हैं
ओर वो सोचता था कि
लोग जीते क्यो हैं
' कैसे' की तरफ उसका द्य्यान नही था
क्योकि सुधार मुमकिन न था
क्योकि सुधार लोकतंत्र चुनता है
' क्यो' की तरफ उनका भाव न था
क्योकि जवाबो के बिना सवाल कैसे
वो जिन्दगी की कहानी कहते रहे
वो जिन्दगी ढूंढता रहा
वो जी रहे थे,
जब वो सोचता है कि
मौत कैसी होनी चाहिये,
अक्सआता है।
हर हाल मै जिन्दादिल,
. . . . .
पर उन्हे मौत से नफरत है। ।
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