जीवनधारा कल कल निनांद
उत्सर्जित प्राणो का अभियान
तुम कहाँ ख़ड़े हो, देख रहे नहीं
बूँद बूँद का निर्लिप्त बलिदान
ये अविरल प्रवाह लगता निर्दुन्द
सृजक है राग का, बनाता महागान
तुम कहाँ रुके हो बिना जाने
जलधारा के संयोजन से अनजान
चट्टानों में सर देकर पर्वतो की पहचान
झेल रहा अविकल् अनेको झंझावात
देखो लहराते वृक्षो को , कौन गया
सर्वस्व होम कर प्रकृती को देकर जान