Thursday 26 April 2012

जिन्दगी को बांधे रखने के कुछ कुंदे है कुछ फंदे है
विध्यार्जन ,भविष्य कैरिएर ,और ..........         अंत 
the END
बिना खाल की अस्थि
फंदे टूट जाते है
कुंदे छूट जाते है
जिन्दगी बीत जाती है
जिजीवषा रीत जाती है
बिना खाल की अस्थि
बहा दी जाती है -निर्लिप्त गंगा में
आनंद / जॉय की खाल जिन्दा रखती है
दुखों को सहने से बचाव करती है
खाल न हो तो क्या हो
खाली खाली खाली
ये प्यार की खाल
ये दोस्ती की खाल
ये सेक्स  , ये DESIRES
ये दिन ये उजाला -खत्म
बस रात रात रात
काली रात ,  रात काली
तारें जगमगातें है
जैसे मेरे चारो और मेरे परिचित
मेरे हमराह मेरे खैरख्वाह
इन तारों को सलाम
तमाम यारों को सलाम
कुछ न मांगो ,कुछ न चाहो
यहाँ चाहने का है अंत
THE END
यहाँ अंत को चुनौती है
अंत चाहतो का
ख्वाहिशो का
रिश्तों का अंत नहीं होता
ये बनते ही बिना आदि ओ अंत के है
ये दुनिया के सृजन की अभिव्यक्ति है
और जीवन अभिव्यक्ति का नाम है
कुछ नहीं होकर भी सब कुछ है
फंदे जिन्दगी की पाल है
कुंदे जिन्दगी का लंगर है .





1 comment:

  1. राजेश19 March 2015 at 18:02

    क्यों ढूंढ़ रहा
    खाल को
    अस्थियों को
    इस मिथ्या
    संसार में!
    रिश्तों के झूटे
    सागर मे
    गोते लगा के
    मन नहीं भरा !
    अस्थियों का क्या
    आज खाल में
    कल कलश में
    भला है 'जिनराज'
    जो जुड़ा है
    काव्य से
    क्योंकि--
    काव्य ही एकमात्र
    सत्य है
    शिव है
    सुंदर है ......

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