Wednesday, 12 March 2014

एक  ख्याल को सँवार  कर

तेरे बुत को निखारा मैंने

अब दुनिया की नज़रो मे

बुतपरस्त हुए जाते हैं

आइना  अंदाज़ की ज़ुबां नहीं होता

ज़ुबां है   दिल मे उसे बंद रखे जाते हैं

हम अश्क बहा कर भी तपिशे लहू से परेशां

पानी मर गया जिनका वो खून किये जाते है

बोलियां गुमराह हें आवाज़ो की मंज़िल नहीं

कहने वाले बहुत सुनने वाले गुम हुए जाते हैं 

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