Wednesday 12 March 2014

 जीवनधारा  कल कल निनांद

उत्सर्जित  प्राणो  का अभियान

तुम कहाँ ख़ड़े हो, देख रहे नहीं

बूँद बूँद का  निर्लिप्त बलिदान

ये अविरल  प्रवाह  लगता निर्दुन्द

 सृजक है राग का, बनाता महागान

तुम कहाँ रुके हो  बिना जाने

जलधारा  के संयोजन से अनजान

चट्टानों में सर देकर पर्वतो की पहचान

 झेल रहा अविकल् अनेको झंझावात

देखो लहराते वृक्षो को , कौन  गया

सर्वस्व  होम कर प्रकृती को देकर जान


 

1 comment:

  1. भैया जिनराज
    यह रचना हमारे
    सिलेबस के बाहर की है
    टिप्पणी तो दूरकी बात है
    समझ आजाये यदि
    वही बड़ी बात है!

    ReplyDelete