प्राक्कथन-
अपने मित्र द्वारा लिखित पुस्तक "विभाजन का दंश# "हाथ मे लेकर उसको उलट पलट कर लेखक परिचय को सघन भाव से गूढ़ते रोमांच से ज्यादा गर्व का अनुभव हुआ ।
रोमांच, रचना मे सन्निहित शंकर दादा के जिये हुए यथार्थ मे पसरे अनुभव का,
उसकी अनुभूति के सम्प्रेषण का, उनके साक्षात्कार का,
सत्य अनावरण का,
इत्यादि इत्यादि जो पुस्तक चर्चा पर उत्तरोत्तर प्रकट होगा।
गर्व,अभिव्यक्ती के शक्ति दर्शन व उसके निकट साक्ष्य होने का।
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