Wednesday, 4 December 2024

वो क्षण

जिन्दगी भी अजब धुआं धुआं न खाली न भरी हुई कुछ खालीपन भरना है कुछ भरे को उड़ेलना कुछ झाड़ कर खाली करना पर रुके नही चल पड़ना यूं जैसे ये लगे ठहरी हुई। जंगलों के परे कईं जंगल फैले हुए जबकि हर जंगल स्वयं मे पूर्ण फैलाव स्मृति को धुंधलाते पुकारते किस एक क्षण मे अहसास की जमीन गहरी हुई।

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