Saturday 9 July 2016

देखते हैं बहुत कुछ
द्ष्टि मे आता है कम
बहुत तेजी से बदलते है पल
पर जीवन पला है कम
जीना स्थगित सा है
सामने से गुजर जाता है सब
साथ तो पर निभाना है
रोज मुस्कुराना है
ये दर्द ना बिखर जाये राहो में
इसे धुयें मे उड़ा जाना है
धुआं जो न दिखे
आग जो न बुझे
जिन्दगी तो जलाती है
पर जो इसके पार है
उसका भी क्या ठिकाना है
वजू़द नही वजूद की वजह तलाश की
हाथ खाली न थे
न ही खाली हाथ जाना है
सब हिसाब लगाकर देखो
सब हिसाब हैं कम
रुह के कर्ज रुह से अदा कर जाना है

No comments:

Post a Comment