Saturday 9 July 2016

जंग जब खुद से हो
लहु पानी की तरह बहता है
दर्द की इन्तहा का भी
एहसास नही रहता है
वो मैदान भी मेरा नही
इस दुनिया का ही दावा रहता है
कौन है जिसने इस दुनिया मे पिरोया
मै भी टूटा माला भी तोड़ कर चला गया
ये इम्तहान फिज़ुूल है या कोइ मायने रखता है
जब अर्थ की लड़ाइ खद की है
तो किसी को क्या साबित करना है

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