लहरो से पेड़ो तक
जगंलो से घरो तक
हवाओ से दीवारो तक
पलता रहा हू
सदियो का पाप कटता नहि
अंतरतम जाने को वयाकुल प्राणो को
फिर ये दुनियावी जरुरते बाहर धकेलती
बाहर जाते असंयम ओ त्रसना को
अंतर की पुकार का पहरा
चोखट पर खड़े नृसिंह कि तरह
सदैव वध किये जाने को नियत
यही है जिन्दगी न इस पार
न उस पार
इक बूंद है,
कुछ क्षणो का व्यापार
जगंलो से घरो तक
हवाओ से दीवारो तक
पलता रहा हू
सदियो का पाप कटता नहि
अंतरतम जाने को वयाकुल प्राणो को
फिर ये दुनियावी जरुरते बाहर धकेलती
बाहर जाते असंयम ओ त्रसना को
अंतर की पुकार का पहरा
चोखट पर खड़े नृसिंह कि तरह
सदैव वध किये जाने को नियत
यही है जिन्दगी न इस पार
न उस पार
इक बूंद है,
कुछ क्षणो का व्यापार
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